Showing posts with label Geet. Show all posts
Showing posts with label Geet. Show all posts

जय हिन्द .....


इस गुलशन के हर फूल को बचाने के लिए 
आज़ादी के उसूल को बचाने के लिए

वादी-ऐ-कश्मीर की हिफाज़त के लिए 
रावी गंगा नीर की हिफाज़त के लिए 

हर नौजवान देश पे कुर्बान रहेगा 
हम रहे ना रहे पर हिन्दस्तान रहेगा
कवि अब्दुल जब्बार

मीरा.....

मीरां मन हारी बावरी गिरवर गिरधारी से

क्या लेना देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

क्या धरा है हाथी घोड़े सुंदर महलों में
सब बोने मेरे मन्दिर की इस चारदीवारी से
क्या धरा है सोने चांदी सुंदर गहनों में
बैसाखी भण्ड़ार भरे, सावन में बरसे मेघ
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फलते-खिलते बाग-बगीचे, ये लहराते खेत
चंवर ढुलाते चाकर बैठे सब सरदार

पर फूल चल कर आते है ब्रज की फुलवारी से
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फौज फांटे तोप तमन्चे हाथों में तलवार
पर बंशी भरी, तोप तमन्चों की चिंगारी सें
चलो चलें बृज करे चाकरी मुरलीधर के द्वार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
छोड़ो राजा राज सिंहासन है सारे बेकार जन्म-जन्म का साथ करो जी कृष्ण मुरारी से हरी हरे हर पीर तुम्हारी दुःख देने वाले अमृत बरसे तुम पर मुझको विष देने वाले
“जब्बार” अमर होते है कुल ऐसी कुलनारी से
विनती यही है मेरी इस सुदर्शनधारी से क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से। सुरज चांद सितारे अपने जलथल अपरम्पार क्या धरती मेवाड़ मेड़ता अपना घर संसार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

कवि अब्दुल जब्बार

पानी बचाएँ हम

प्यासे को पानी प्यार की बस्ती बसाएँ हम,

ने आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।

आवारा बादलों ने सूखा दी वसुन्धरा
मौसम तो बदमिजाज है, सावन भी मसखरा

काली घटा फरार है कैसे बुलाएँ हम
फिर भी भली जीम ने हमें नीर दिया है

लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
लालच इस धरा का जिगर चीर दिया है
पर वास्ते सभी, के अभी जल बचाएँगे
इस प्यारी कायनात को क्यों कर सताएँ हम पैसा अभी बचे ना बचे कल बचाएँगे अनमोल जल से जान किसी की बचाएँ हम
वो पुण्य एक प्यास बुझाने में पाओगे
लो अजा कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। सौ साल सर झुकाने पे तो पुण्य पाओगे सस्ता है सौदा साथ बराबर निभाएँ हम
रूठी हुई बहार को फिर से मनाएँ हम
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। पानी के पायदान पे साँसों का ये सफर बेवक्त रुका ना जाएँ जमाने से हार कर
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
ले आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। इंसान तो इंसान से रिश्ता निभाएगा बेबस पशु परिन्दा कहाँ पानी पाएगा जिसने पिलाया दूध उसे जल पिलाएँ हम
सहारा हो सब्ज रेत में सूरजमुखी खिले
बेटे के नाम एक, तो बेटी के नाम दो आँगन में अपने पेड़ लगना है आपको अब तो समय की धूप से बच्चे बचाएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
बेटी ना मारो पेट में संयम से काम लो
प्यासे परिन्दे पाएँ जो पानी खुशी मिले सदियों से तपती रेत में चश्में हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। सुखे से पिटना है तो हिम्मत से काम लो
बिगड़े हुए निजाम को फिरसे बनाएँ हम
बेटी-बहन के प्यार को दिल में बसाएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। नायाब आबे आब चलो पीले बाँट कर थोडे़ को ज्यादा जान चलो जी ले साँस भर लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
प्यासों के लिए देश में गंगा भी कम पड़ी
पानी की बूँद बूँद जवां जान जिन्दगी पानी बगैर प्यास के बेजान जिन्दगी जीवन है जल जहान को पल पल बताएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। आजादी सौ करोड़ यहाँ इस कदम बड़ी “जब्बार” अब तो देश में गिनती घटाएँ हम
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।



कवि अब्दुल जब्बार

Ye Nirmal Neer Ganga Ka ( ये निर्मल नीर गंगा का): Kavi Abdul Jabbar


उजाले कर दे जीवन में,
उमंगे भर दे हर मन में,
धो डाले गुनाहों को,
दिखा दे नेक राहों को,
मिटा दे मन की आहों को,
वे चाँद-सी चमकता है हिमाला इसके आँचल में
ये निर्मल नीर गंगा का।
ये गुजरें पेड़ की झुरमुट में जैसे नैन काजल में
ये गुजरे पर्वतों के बीच जैसे बिजली बादल में
हो संध्या जब किनारों पर,
बजे कल-कल की यूँ आवाज जैसे घुंघरु पायल में,
बहारें हैं बहारों पर,
मिले जिस खेत को ये जल वो केसर में ढ़ले सारा
जलें यूँ दीप धारों पर, ये निर्मल नीर गंगा का। उमड़ जाये हरी खेती वो मोती-सा फले सारा
भरे हिम्मत किसानो में,
मवेशी मस्त मनचाहा पिलाये दूध की धारा जहाँ उड़ता हुआ पंछी भजे हरी ओम का नारा चमक चंादी सी दानो में,
हो पापी, गिर गया हो पाप से जग की निगाहों में,
बढ़ाये स्वाद खानों में, ये निर्मल नीर गंगा का। भटक जाता है जब कोई कभी जीवन की राहों में,
करे पतझड़ में भी सावन,
लगाले ये गले उसको, उठाले अपनी बाहों में संवारे हर जनम उसको, उठाले अपनी पनाहों मंे करे पत्थर को ये पावन, थमाये पुण्य का दामन,
मुसीबत में रखे सबका खरा ईमान गंगाजल
ये निर्मल नीर गंगा का। हमारी संस्कृति और देश की पहचान गंगाजल रहा सदियों से सन्तों का यही गुणगान गंगाजल सबल विश्वास है अपना, हकीकत है नही सपना,
हो खाली गोद पीले ये, तो गोदी उसकी भर जायें
ये जल क्या मंत्र है अपना, ये निर्मल नीर गंगा का। लगाले नैन से कोई, तो ज्योति उसकी बढ़ जायें लगाले भाल से कोई, मुक्कदर उसके बन जायें हैं आशाओं भरा पानी,
करोड़ो की कमाई छोड़, घर में लाओं गंगाजल
नहीं इसका कोई सानी, करें हम पर मेहरबानी, ये निर्मल नीर गंगा का। हमंे जीना तो बरसो है मगर मरने को है एक पल उजाले जिन्दगी के आज बन जायें अंधेरे कल ये शक्ति देश का दर्पण,
ये निर्मल नीर गंगा का।
विदेशी एक आकर्षण,
ये मेरे गीत का दर्शन,

Ye Nirmal Neer Ganga Ka ( ये निर्मल नीर गंगा का) Kavi Abdul Jabbar




उजाले कर दे जीवन में,
उमंगे भर दे हर मन में,
धो डाले गुनाहों को,
दिखा दे नेक राहों को,
मिटा दे मन की आहों को,
वे चाँद-सी चमकता है हिमाला इसके आँचल में
ये निर्मल नीर गंगा का।
ये गुजरें पेड़ की झुरमुट में जैसे नैन काजल में
ये गुजरे पर्वतों के बीच जैसे बिजली बादल में
हो संध्या जब किनारों पर,
बजे कल-कल की यूँ आवाज जैसे घुंघरु पायल में,
बहारें हैं बहारों पर,
मिले जिस खेत को ये जल वो केसर में ढ़ले सारा
जलें यूँ दीप धारों पर, ये निर्मल नीर गंगा का। उमड़ जाये हरी खेती वो मोती-सा फले सारा
भरे हिम्मत किसानो में,
मवेशी मस्त मनचाहा पिलाये दूध की धारा जहाँ उड़ता हुआ पंछी भजे हरी ओम का नारा चमक चंादी सी दानो में,
हो पापी, गिर गया हो पाप से जग की निगाहों में,
बढ़ाये स्वाद खानों में, ये निर्मल नीर गंगा का। भटक जाता है जब कोई कभी जीवन की राहों में,
करे पतझड़ में भी सावन,
लगाले ये गले उसको, उठाले अपनी बाहों में संवारे हर जनम उसको, उठाले अपनी पनाहों मंे करे पत्थर को ये पावन, थमाये पुण्य का दामन,
मुसीबत में रखे सबका खरा ईमान गंगाजल
ये निर्मल नीर गंगा का। हमारी संस्कृति और देश की पहचान गंगाजल रहा सदियों से सन्तों का यही गुणगान गंगाजल सबल विश्वास है अपना, हकीकत है नही सपना,
हो खाली गोद पीले ये, तो गोदी उसकी भर जायें
ये जल क्या मंत्र है अपना, ये निर्मल नीर गंगा का। लगाले नैन से कोई, तो ज्योति उसकी बढ़ जायें लगाले भाल से कोई, मुक्कदर उसके बन जायें हैं आशाओं भरा पानी,
करोड़ो की कमाई छोड़, घर में लाओं गंगाजल
नहीं इसका कोई सानी, करें हम पर मेहरबानी, ये निर्मल नीर गंगा का। हमंे जीना तो बरसो है मगर मरने को है एक पल उजाले जिन्दगी के आज बन जायें अंधेरे कल ये शक्ति देश का दर्पण,
ये निर्मल नीर गंगा का।
विदेशी एक आकर्षण,
ये मेरे गीत का दर्शन,

Aarajoo आरजू (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-60)

 आरजू

या इलाही कर दे हम सब पर रहम 

छाए खुशियाँ हर तरफ कर दे करम 


हो सलामत और सब फूले फलें 

कामयाबी चूमे सबके हर कदम


 तन्दुरूस्ती बख्श दे हर शख्स की

 दूर जो जाये बवा रन्जों अलम 


 हो तिजारत में तरक्की बरकतें 

रोजी रोटी कर अता रख ले शरम 


खेत उपजे कारखाने दे नफा

 काम दे हर हाथ को रख ले भरम 


 आदमी महफूज हो शैतान से 

मज़लूम पर ज़ालिम ना कर पाये सितम


 हर धरम का मान हो सम्मान हो

 बस वतन के वास्ते निकले ये दम 


भाईचारा भर हर इक इन्सान में 

हो जहाँ में बस मोहब्बत दम बदम


 कर अता औलाद बिन औलाद को 

हो ना खाली गोद कोई आँख नम 


 बेसहारों को सहारे के लिए

 चलता रहे जब्बार तू तेरी कलम 


Mahaaveer महावीर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-59)

 महावीर

 ओ अहिंसा के पुजारी कर दिया तूने कमाल

 ओ दया के देवता महावीर जग तुमसे निहाल 


 पाप के अंधियारे पूनम के उजाले खा गये

 पुण्य के आकाश में हिंसा के बादल छा गये

रो पड़े गंगा के धारे जब लुटा सबका धरम

  सह ना पाये दीन दुखियारे भला जुल्मों सितम

   खोट मानव के सभी पल में दिये तुमने निकाल 

ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल


जनम कुण्डलपुर हुआ उसकी छवि कुछ और थी

थी सुहानी वो निशा रंगीन प्यारी भोर थी

आया लेकर नव किरण सूरज तभी उस गाँव में

 सो रहा था एक मसीहा माँ के आँचल छाँव में


खोट मानव के सभी पल में दिये तुमने निकाल 

  ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल


 बाल योगी तुम मेरे इस देश के वरदान हो

साधना सिद्धार्थ कुल की तुम दया की खान हो

 डरती बाधाएं सदा ठोकर तुम्हारे पाँव से

कष्ट भागे दूर तुम निकले जिधर जिस गाँव से

दूर अंधियारे गये तूने जलाई वो मशाल


खोट मानव के सब पल में दिये तुमने निकाल 

ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल 


Vandana वन्दना (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-58)

 वन्दना

ऐ माँ सरस्वती तुम्हारी वन्दना करें

 हाथ जोड़ हम तुम्हारी अर्चना करें 

शुद्ध कर हमारे मन के दोष छांट दे

 विद्या दया का दान हम सभी में बाँट दे 

दे वो शक्ति जन की सेवा वंदना करें 


  एकता के सूत्र में बंधे रहें सभी

 मन मुटाव से सदा बचे रहें सभी 

दर्द बांट लें किसी को दर्द ना करें


हम जीएं मरें हमारे देश के लिए

 "सत्यमेव जयते" संदेश के लिए

 बुरी नज़र तिरंगे पर पसंद ना करें


 देना मेरे देश को वो नेता भारती 

  कुर्सी से पहले देश की उतारें आरती

 जनता को मेरे देश की जो तंग ना करे 


अनंत में झुका के सर बिछाके दो नयन

 स्वीकार लो, स्वीकार लो, विनम्र ये नमन

 तेरे चरण कमल से शीश तर्क ना करें 

Trishala Nandan त्रिशला नन्दन (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-57)

 त्रिशला नन्दन

धरम करम इन्सान की सेवा जिसका घर संसार है

दुनिया के दुःख दर्द में हर दम महावीर तैयार है

त्रिशला नन्दन का अभिनन्दन कर लो बेड़ा पार है


छोड़ सिंहासन राजकुंवर ने जीवन का रूख मोड़ दिया 

 तोड़ के रिश्ते नाते घर से जग से रिश्ता जोड़ लिया 

  कांटों पर चल कर स्वामी ने फूल खिलाये दुनिया में 

 सत्य अहिंसा दया धरम के दीप जलाये दुनिया में 


त्याग तपस्या अमर है उनकी जब तक ये संसार है

 त्रिशला नन्दन का अभिनन्दन कर लो बेड़ा पार है 


आज अहिंसा की लहरों पर दया की नईया सागर में

 पतवारों पर धर्म पताका चला खेवईया सागर में 

  जल थल में जीवन जीने की भोली सही अहिंसा से 

  अमन चैन की खुशबू सुन लो फैली रही अहिंसा से 


तूफानों से लड़ के निकली नेकी की पतवार है

 त्रिशला नन्दन का अभिनन्दन कर लो बेड़ा पार है 


हो कल्याण करोड़ों का और ये सुन्दर संसार रहे

 भाई चारा फैले ज़्यादा एक दूजे में प्यार रहे 

 

छल मारे और लालच दुःख दे कपट सदा अपमान करे

 ये सब छोड़ो वो सब धारे जिससे जग सम्मान करे


दीन दुःखी का भाग निकालो अपने करोबार से

त्रिशला नन्दन का अभिनन्दन कर लो बेड़ा पार है


  बारूद पे बैठी दुनिया का बस एक धर्म 

तोपों के रूख मोड़ के रखना ये बस कर्म हमारा है

 संतों के आदर्श रहेंगे साथ हमारे संकट में

  भक्तों के सामर्थ रहेंगे हाथ सहारे संकट में 


जब्बार ये स्वामी महावीर की लीला अपरंपार है

 त्रिशला नन्दन का अभिनन्दन कर लो बेड़ा पार है 


Putholi पुठोली (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-56)

 पुठोली

सुन्दर एक पुठोली ग्राम

जहां है लाल फूल बाई धाम

किरणें मंगल गाएं सवेरे संध्या फूले शाम


अरावली की एक श्रृंखला पश्चिम में रखवाली है

 उत्तर-दक्षिण-पूरब देखो तीनों ओर हरियाली है

    छवि निराली मंदिर की टोकर बोले मीठे बोल 

  बूंघटवाली घूमर लेवे भवानीशंकर बजाये ढोल 

  दर्शक आते जाते सारे करते जाते हैं प्रणाम 

 किरणें मंगल गायें सवेरे संध्या फूले शाम 


दूर से मोटर गाती आती इठलाती रेलों की चाल

 खेमकुण्ड की छटा निराली रहता सावन पूरे साल 

चमक रहा पंचायतघर शाला भवन खड़ा विशाल 

राम प्रताप की हिम्मत से यहां के बच्चे हुए निहाल 


देखो सफल हआ है होगा बापजी का आयाम 

किरणें मंगल गाएं सवेरे संध्या फूले शाम 


चमक रही बिजली घर गलियों से अंधियारा भागा है 

नव विकास का दीप जला घर घर उजियारा आया है 

खेत बढ़े खलिहान बढ़े खेत के खेतीदार बढ़े

 दूनी हो गई उपज यहां कि बस दो बच्चे सच्चे बढ़े 


जब्बार सेवा करता जिनकी हर सुबह शाम 

    किरणें मंगल गायें सवेरे संध्या फूले शाम

Rajsamand राजसमन्द (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-55)

 राजसमन्द

एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है

राजसमन्द कहते हैं जिसको जो जी हरने वाला है।

पूरब में हरिओम की सरगम मंदिर एक सुहाना है

पश्चिम में है विकास की बेला पर्वत एक पुराना है

उत्तर में है पानी-पानी झील बड़ी-मतवाली है

दक्षिण की क्या छवि बताऊँ देखू जिधर हरियाली है

 चारों दिशाओं के मधुबन में 

आती बहारें इस गुलशन में

 है वरदान के इस धरती पर

रहता सावन भी पतझड़ में 

संत दयाल का किला कला का एक नमूना आला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 


दो पर्वत के बीच नदी को एक शहंशाह ने जो रोकी 

संगमरमर से है सजाया नाम दिया उसका नौचोंकी 

नौ नौ ईन्च की नौ सिड्डी में नौ पाचों को संवारा है

 एक अजन्ता को क्या देखें देखो कैसा तराशा है

 ये गुलमर्ग है अपना हमारा

 कितना प्यारा दरिया किनारा

 रंग बिरंगी चुनरी सूखे 

ऐसा है गउ घाट नज़ारा 

गोपी मां ने गेवर मां को पूजा में रंग डाला है

एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है


कृष्ण कन्हैया कांकरोली में राम बिराजे राजनगर में

 एक अवध के आंगन जैसा दूजा वृंदावन सा घर में 

देव धरा कल्याणी इस पर बसते पावन प्यारे लोग 

बृज भूषण जी से अनुरागी धर्म परायण सारे लोग 

कवि दाम ये गुण गाता है 

कृष्ण सुदामा सा नाता है

 चरण को धोने द्वारकेश के 

झील का पानी खुद आता है

 सुन्दर टाकीज के परदे पर कृष्ण कन्हैया आला रे

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर रंग निराला है


ताल तलईया नदिया नाले पेड़ पहाड है प्यारे प्यारे

 उड़ते है बेखोफ परिन्दे नील गगन में पंख पसारे 

आसोटया सनवाड सॅवाली, मंडा मौरचणा उपकारी 

इनकी चौपालों में गूंजे मीरा सूर कबीर-बिहारी

रामेश्वर महादेव की माया

गोराजी काला जी भाया

दरवेषो की इस नगरी पर

मामू और भाणेज का साया

आचार्य निरंजन नाथ हमारा नेता रूतबे वाला है 

एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर रंग निराला है 


संतो के सरताज हमारे तुलसी कोहेनूर जहां पर

 ज्ञान कला साहित्य का सृजन होता है भरपूर वहाँ पर 

नाते गज़लें कमाल शाह की हमको कामिल बना रही है

 सम्बोधन में कलम कमर की हमको काबिल बना रही है 

गांधी सेवा सदन हमारा 

मानव की सेवा में सारा

 बाल निकेतन बना रहा है 

बच्चे को तालीम का तारा

 काका कर्नावट ने तो इतिहास नया रच डाला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 


इस नगरी का चलन निराला शीतल चंचल जीवन धारा

 एक दूजे के प्यार में पलता उजला मन अपनापन सारा

 सदियों से सर सब्ज रहा है धरम करम का ताना-बाना 

जगन्नाथ के परम पुण्य से चुगते रोज़ कबूतर दाना

 फूलों फलती खेती बाड़ी 

आगे बढ़ती जीवन गाड़ी

 खेल जगत की हस्ती हम में 

श्याम किशन से नाम घनश्याम खिलाड़ी

 जल चक्की की धुन पर अफज़ल ने गीतों को ढाला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 


चित्रकार स्नेही का जलवा द्वारकेश की काव्य साधना

 अरूण अनोखा के गीतों की बहे सदा रसधार कामना 

सत्य, अहिंसा, दया, धर्म के रहे उपासक ये उपकारी 

तुलसी के चरणों में रहते कविवर पुज्य चतुर कोठारी

 जहाँ अंधेरों से खतरा हो, दीपक बनकर ये जलते हैं

 मानवता के हर सुख-दुःख में साथी बनकर ये चलते हैं 

सृजन सुजान तपस्वी त्यागी,

 ये अलमस्त अलख अनुरागी 

ये समाज के सखा सारथी,

 तन कोमल है मन बैरागी

तैराकी तन-मन विनोद का सबका देखा भाला है,

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 



धोली खान के जलवे जग में ये अनमोल खज़ाना है

 इसके सुन्दर संगमरमर का ये संसार दिवाना है 

मेहनतकश मजबूत सिलावट इसका रूप सवारने वाले 

हर मजदूर के हाथ के छाले इसको खूब निखारने वाले 

ये कुदरत का तौहफा भाई 

चमक चांद की इसने पाई 

माणक मोती इसमें निकले

 करे जो रब के नाम खुदाई 

अकबर ठेकेदार का चुना चमक बढ़ाने वाला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 


ये सरदार अली सैय्यद का शहर है शानो शौकत वाला

 इसकी शामों सहर पाकीज़ा ये ईमान की दौलत वाला 

इस बस्ती में अपनापन है इस बस्ती में भाईचारा

 इस बस्ती में अमन चैन है ये बस्ती तो वतन हमारा 

आलीशान सिलावट सारे

 है खुद्दार पठान हमारे 

यहाँ की सुन्दर बहन बेटियाँ 

फूलों जैसे बच्चे प्यारे

 ये रचना मां मरियम जिसने मुझ "जब्बार" को पाला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है

 घी गुड़ चावल मिर्च मसाला रामकरण सब देने वाला

 कबर में बाया प्यार से कहती रोज़ खरीदे सकरी खाला

 काले खां और हसन कुरैशी अली मोहम्मद छोटे बाबू 

चिन्दा बा के चेहरे पर है बक्षुबा के नूर का जादू 

माणक चोक ये नायक वाड़ी 

डेरा और सिलावट वाड़ी

 है पठान वाड़ी का रूतबा 

दिलवाले दिलदार जुगाड़ी 

चाँद सितारों के परचम का पर्वत पीरों वाला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है 

 

पन्नालाल भंवरजी लढ्ढा, मिठू गेहरी लाल जी धोका

 इनसे ईद दिवाली अपनी निर्धन से है मेल अनोखा

 धर्मावत कर्नावट महेता कोठारी चपलोत सहारे 

नन्दवाणा बम और बडोला खतरी सब सहलोत हमारे

 पान बना शंकर तम्बोली

 ढोल बजारे अब्बा ढोली

 पेट दुःखे तो सस्ती सुन्दर

 वैद्य सिकन्दर देदे गोली

 ये जब्बार की जनम भूमि है अनुपम है और आला है

 एक शहर की सैर कराऊँ सुन्दर संग निराला है। 

 


Deepotsav - दीपोत्सव (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-54)

 दीपोत्सव

बधाईयाँ एवं मंगल कामनाएँ

दीप जले 

प्रीत फले 

और अंधेरे हाथ मले 


मिले गले

 लोग भले

सुख दुःख में साथ चले


चमन फले 

गगन तले

 हमें नफरत नहीं छले 


  कदम चले

  प्यार पले

फिर प्रभात हो शाम ढले


   ये शुभ कामना स्वीकार लो

सच्चा प्यार दो सच्चा प्यार लो

 


Saaksharata-gaan साक्षरता-गान (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-53)

साक्षरता-गान 

चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं

जाँबाज़ इस जिले को साक्षर जिला बनाएं, बनाएं 


 घर गांव ढाणी-ढाणी हमको अलख जगानी

 अनपढ़ की ज़िन्दगी में पढ़ने की लौ लगानी

     इस रोशनी के रथ को आगे सदा बढ़ाएं, बढ़ाएं 

चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं 

मीरा ने पाया मोहन गोदी में इस धरा के

पाया प्रताप ने यश माँ इस वसुन्धरा से 

वो कीर्तिमान फिर से हम लोग भी बनाएं, बनाएं

चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं

 

   सदियों से साथ अपने बेड़च का बहता पानी 

   गम्भीरी गंगा अपनी है सब की ज़िन्दगानी

  बोली बनास सबसे आओ पढ़ें पढ़ाएं, पढ़ाएं

 चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं 


नारी का पढ़ना लिखना उत्थान है हमारा 

बेटी बहन का बढ़ना सम्मान है हमारा

 पन्ना-ओ-पद्मनी के काबिल इन्हें बनाएं, बनाएं

 चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं 


     ये डूंगला भदेसर वो सादड़ी कपासन

 गंगरार राशमी में अरनोद सा सनातन

   बेगूं प्रतापगढ़ मिल आगे कदम बढ़ाएं, बढ़ाएं

चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाए, बढ़ाएं


निम्बाहेड़ा गज़ल है इक शहर है अदब का 

देता भोपालसागर चावल हमें गज़ब का 

है भैंसरोड़गढ़ में अणुशक्ति की अदायें, अदायें

 चित्तौड़गढ़ की गरिमा सुख शान को बढ़ाएं, बढ़ाएं 

Baandh chala gatharee andhiyaara बांध चला गठरी अंधियारा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-52)

बांध चला गठरी अंधियारा 

आज दिवाली पर उजियारा फैला इतने प्यार से ।

 बांध चला गठरी अंधियारा इस सुन्दर संसार से ।।


 आँगन आँगन फैली खुशियां यौवन पर खुशहाली है। 

ऋद्धि सिद्धि ने इसे संवारा हर काया मतवाली है।। 


आज नयापन रूप का निखरा नारी के श्रृंगार से |

 बाँध चला गठरी अंधियारा इस सुन्दर संसार से।।


 रंग बिरंगी आतिशबाजी खुशियों का इजहार करे ।

 रंग बिरंगी पोशाकों से बच्चे बेहद प्यार करें ।। 


चहल पहल है आँगन चन्दन महक उठी हर द्वार से। 

बाँध चला गठरी अंधियारा इस सुन्दर संसार से ।। 


किरण किरण के साथ में फैला अपनापन प्यारा है। 

चन्दन सी खुशबू सा फैला हम में भाईचारा है। 


रोशन हो गई सारी दुनियां दीप तेरे उपकार से।

 बांध चला गठरी अंधियारा इस सुन्दर संसार से ।। 

Pashudhan bachao पशुधन बचाओ (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-51)

 पशुधन बचाओ 

बचाओ बचाओ गऊधन बचाओ 

देखो ये मरता पशुधन बचाओ 


 के माँ की तरह जिसे हम पूजते हैं 

 के भगवान मिल के गले झूमते हैं

  भगवान है, गीता ये, कुरान ये है 

 ये गंगा का पानी है, भगवान ये हैं


 ये रूप है देवी का यम से छुड़ाओ

 देखो ये मरता पशुधन बचाओ 


सिसकती बिना घास के वो सिसकती 

  बिलखती बिना पानी के बिलखती 

 कि बछड़ा बिना दूध भूखा है प्यासा 

  जीने के उसकी बहुत कम है आशा 


समय बीत जायेगा पुण्य कमाओ

 देखो ये मरता पशुधन बचाओ 


 चलने से मजबूर पैरों में छाले

 ये मतवाले मुखड़े पड़े काले काले 

सिवा अब तुम्हारे सहारा नहीं है 

सिवा जान जाने के चारा नहीं है 


समय बीत जायेगा पुण्य कमाओ 

देखो ये मरता पशुधन बचाओ

 

हमारा किया जिसने सदियों गुज़ारा 

पड़ी उसपे आफत तो हमको पुकारा 

  उठो यूं लगावो घर घर में नारा 

  ये मरने न पाये पशुधन हमारा 


ये संकल्प अपना सभी को सुनाओ

 देखो ये मरता पशुधन बचाओ 

Gajal गजल (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-50)

 गजल 

 सावन की सांझ में ना यूं नज़रें चुराईये

मेरे करीब आईये मुझको बुलाइये 


होती है शर्म गैर से अपनों से क्या गिला

 चहरा-ए-चाँद से ज़रा चिलमन उठाइये 


  जितने हसीं हैं आज हम उतने कभी ना थे 

इस बांकपन को देखने पलकें उठाइये 


 सरमाया है हुस्न का तो कद्रदान इश्क है 

आँचल में भर करोगी क्या इसको लुटाइये 


भूला हूँ ज़िन्दगी में सभी आपके सिवा

दिवाना हूँ मैं आपका यूँ ना भुलाइये 


हद हो गई है सब की, बस एक आरजू 

चूंघट उठाओ या मेरी मैय्यत उठाइये। 

Geet गीत (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-49)

 गीत

    जो जीवन में गिरकर उठे ना दुबारा 

उन्हीं को उठाने चले गीत मेरे

 ज़रूरत जिन्हें थी मिला ना सहारा 

उन्हीं को लगा ले गले मीत मेरे 


उजाले के लालच में छलते अंधेरे

जिधर जायें राहों में लगते घनेरे

 आयेंगे जब तक हमारे सवेरे

  हमें लूट लेंगे ये घर के लुटेरे


उजाला हो जीवन में जिनके दुबारा 

वो दीपक जलाने चले गीत मेरे 


  बड़ी मुश्किलों का ये सूना सफ़र है

छोटी उमर संग लम्बी डगर है 

 सागर जो छोड़े तो लूटे लहर है

 भला बेवजह क्यों ये हम पे कहर है 


भटकती हुई नाव ढूँढे किनारा

 वो नईया चलाने चले गीत मेरे 

Jiya jala hai, mita andhera दिया जला है, मिटा अंधेरा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-48)

 दिया जला है, मिटा अंधेरा

आज दिवाली पर उजियारा फैला इतने प्यार से

बांध चला गठरी अंधियारा इस सुंदर संसार से

     आंगन-आंगन फैली खुशियाँ

 यौवन पर खुशहाली है

ऋद्धी-सिद्धी ने इसे सजाया

हर काया मतवाली है

आज नयापन रूप का निखरा नारी के श्रृंगार से 

बांध चला गठरी अंधियारा सुंदर संसार से 

रंग बिरंगी आतिशबाजी 

खुशियों का इजहार करें

 रंग बिरंगी पोशाकों से 

बच्चे बेहद प्यार करें 

चहल-पहल है आंगन चंदन महक उठी हर द्वार से

बांध चला गठरी अंधियारा सुंदर संसार से

   किरण-किरण के साथ में फैला

अपनापन भी प्यारा है

चंदन की खुशबू सा फैला

 हम में भाईचारा है

 रोशन हो गई सारी दुनिया दीप तेरे उपकार से 

बांध चला गठरी अंधियारा इस सुंदर संसार से 

Akaal अकाल (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-47)

 अकाल

 घात कर गया फिर से सावन खेतों से खलिहान से 

दूर हो गया पानी प्यासे पशुधन और इन्सान से

 इन्हें बचाओ, पुण्य कमाओ, देकर दान महान से 


 बिन पानी बिन घास के गौधन गया रे मौत की बाहों में 

 जीते जी मर गये मवेशी तड़पे नीर की चाहों में 

 अनबोले प्राणी के पग-पग सूरज पिघले राहों में 

 गोकुल का कान्हा बन कोई ले ले इन्हें पनाहों में

 गोपालक के गाँव गली घर लगते हैं श्मशान से 


टूट गया नाता खेतों से मौसम का हरियाली से 

टूट गया सपना किसान का जीवन की खुशहाली से 

टूट गया नहरों से नाता पानी पाली-पाली से

छूट गया दामन दानों का जीवन की रखवाली से 


फाड दिया धरती का सीना सखा देख दरारों ने 

मुरझाया माली वीराने बसते देख बहारों में 

 नैना बरसे पर ना बरसे बदरा सावन भादों में 

 ऐसा रूठा रब हमसे के असर नहीं फरियादों में 

बूंघट भूखा पनघट सूखा है सारे बैजान से


हमें लड़ाई लड़नी है सूखे से हर हाल में

कोई भूख से मर ना जाये भाई पड़े अकाल में

दान का दीप जलाये रखना आशा के चौपाल में

भामाशाह बन चमकोगे तुम प्रताप की ढ़ाल में

लड़ो लड़ाई इस अकाल से दिल जान से

Aankhon kee roshanee आँखों की रोशनी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-46)


आँखों की रोशनी 

अनमोल है संसार में, आँखों की रोशनी

 खोना नहीं बेकार में, आँखों की रोशनी 

बिन ज्योत के लाचार, बेबस है आदमी

 मिलती नहीं बाज़ार में, आँखों की रोशनी 

आँखें बदन की शान है चेहरे का नूर हैं 

वो आँख क्या है जो के रोशनी से दूर है 

  उजाले की हिफाजत हो अंधेरे के चलन से 

 रखिये सदा बहार में, आँखों की रोशनी

 वो चांद चांदनी वो सितारों भरा गगन 

सूरज की किरणें छू के हुई ये धरा मगन

 बिन नैन के नज़ारा ये कुदरत का क्या करें

 गुल सी लगे गुलज़ार में आँखों की रोशनी 

हो हौंसला तो कोई भी मोहताज नहीं है

आँखों का मोतिया भी लाइलाज नहीं है 

निकाल देंगे आँख से पलभर में डॉक्टर 

ऑपरेशन के इंतज़ार में आँखों की रोशनी 

आँखों में दर्द हो तो अस्पताल जाइये

 लेकर दवाई राय से चश्मा लगाइये 

नाजुक सा अंग आँख है संभाल कीजिये

 लुट जाए ना घर-बार में आँखों की रोशनी